Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

होली की रात

 

आ गई है फिर
सुहानी सी रात
सुगन्ध बिखेरती
खुf’kयां बांटती
मधुमयी ये गात
अंग-अंग चहकाये
हृदय से हृदय मिलाये
भाई-चारे की रात
चंदनी है बिखरी
तारों सी निखरी
उज्ज्वल बनाती
निशा के गात
आयी है पुनः
स्वर्णिम ये रात
विश्राम करवाने को
नीड़ में जाने को
फाल्गुनी गंध
होली की बात
मिलाये यह सबको
हुलसाये जन-मन को
चहुं ओर लाए
खुशियां
यह न्यारी सी रात
आगई पुनः धरा पर
होली की रात।
आप सभी के लिए
असीम संभावनाओं
की बात
मेरी अनन्त स्वर्णिम
कोटिशः मंगल कामनाओं
के साथ।।

 

 

 

शशांक मिश्र ’भारती’

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ