जगे कवि,कवि की लेखनी देश संकट में है
विस्फोटों का पड़ा साया षान्ति संकट में है,
देश को बांट रहे नदी, नालों और वर्गों में
देश की एकता का आधार जो, वही संकट में है,
धर्म-धर्म न रहा, उलझाया व्याख्याओं में
विष्व जिसे श्रेष्ठ कहता, आज वही संकट में है,
सत्य,अहिंसा,बन्धुत्व की होती थी कभी बातें
हिंसा निगल रही, देश गांधी का संकट में है,
भावनाओं ने धरा रूप घिनौना स्वार्थ वष
सीमाओं पर अतिक्रमण यह देश संकट में है,
बदली सोच लोगों की भारत-भारती के प्रति
बाहर से कहीं अधिक देश अन्दर से संकट में है,
गीत,गजल, छन्द श्रृंगार के बहुत गा लिए
लिखो परषुराम की प्रतीक्षा देश संकट में है।
शशांक मिश्र ’भारती’
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