वे-
मेरी जिन्दगी के
मुरझाये हुए पुष्प
एक दिवस महकेगें
उनमें नवीन कोंपलें फूटेंगी
मलिनता को त्याग
सुख की किरणें बिखरेंगी
तब-
मेरी बगिया में आयेंगी
फिर हर्ष-स्वरों की बहार
और-
मेरे जीवन में एक नूतन सा
सतरंगी मौसम,
जिससे-
पुनः
विकसित हो उठेंगे
शरीर के सर्व अंग-उपांग,
जो-
मुझे खोने पर बाध्य करेंगे
अपनी जिन्दगी के
उन्हीं स्वर्णिम क्षणों में।
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