किसी के जले पर नमक छिड़कना अच्छा नहीं लगता
कोई आगे बढ़ा, उससे द्वेष करना अच्छा नहीं लगता,
अपनी सूरत भोली- भाली नहीं है तो न ही सही
दूसरों के चेहरे पढ़कर बांचना अच्छा नहीं लगता,
कोई मुझे चुपचाप देखकर कुछ भी सोंचे
भैंस के आगे बीन बजाना मुझे अच्छा नहीं लगता,
हर कोई ही किसी न किसी चिन्ता से घिरा हुआ
मुझे उनको और अधिक उलझाना अच्छा नहीं लगता,
मेरे पास नहीं है मोटर कार तो क्या हुआ
दूसरों के घरों में झांक ईष्र्यालु बनना अच्छा नहीं लगता,
मेरी तो आदत है अपनी ही चादर में पांव फैलाने की
और किसी की हैसियत नापना मुझे अच्छा नहीं लगता।
शशांक मिश्र ’भारती’
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