Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कुछ मुक्तक

 

1:-
रीति-नीति है पीछे छूटी सब कुछ यहां नया बन आया,
प्राच्यता को पुराना समझा, संदेशा नया संगणक लाया।
वेश और भेष दोनों हैं बदला गिट-पिट की शौकत छाई,
रिश्ते, अंकल-आण्टी में जकड़े;मम्मी मम,पापा डेड भाई।

2ः-
पागल बन दुनियां में जीते हैं लोग,
दहशत ने कायर बना दिये हैं लोग।
कुछ का काम है गरीबों का दमन,
अमीरों के कुचक्र में फंसते हैं लोग ।।

3ः-
वर्ष नया मनाने से पहले स्वंय नया बन जाना होगा,
जो अब तक अपना कहते, पहले उन्हें अजमाना होगा।
गली-गली आतंक फैलाते संसद तक कैसे पहुंच गए,
ऐसी नापाकी करतूतों का मायाजाल हटाना होगा।।

4ः-
विदेशी बोलते अपनी भाषायें हम विदेशी में जीते हैं।
स्वभाषा-गौरव की न रक्षा प्याला गरल का पीते हैं।
निज भाषा उन्नति ही अपनी एकता का सूत्र है होती,
उसके स्वाभिमान की रक्षा बिन स्वप्न सभी रीते हैं।।

5ः-
आज की नीतियां कुछ बदली नहीं लगती हैं,
बुझी हुई चिन्गारियां भी पुनः जल उठती हैं।
ऐसी स्थिति सोचो, अपने देश का क्या होगा-
तुष्टिकरण से कहीं रणभेरियां भी बजती है।।

6ः-
जहां चाहें जैसे खर्च करते यह दाम हैं।
योजनाओं में इनके कागजी ही काम है।
समाज में व्याप्त यह हैं रक्त लोभी जोंके,
भारतीय होकर भी अंग्रेजी की गुलाम हैं।।

7ः-
मेरी इच्छा सदा देश में खुशहाली बनी रहे,
सुख-शान्ति राष्ट्र के जन-जन में बसी रहे।
ईश्वर से चाहत हमभाव-भाव से सभी मिलेें,
समाज-देश में नूतन क्रांति के फूल खिलें।।

8ः-
नेताओं का देखो राष्ट्रच्यापी पहनावा है कैसा,
नीतियां वही चोला का चोली सा बाना है वैसा।
देश की बदली परिस्थितियों से उन्हें क्या लेना
सत्ता-पद में फंस गये, देश से परे है पैसा।।

9ः-
सत्य को अपनाओ यह मानवता की पुकार है,
भूलने से इसके ही तो अपराधों की भरमार है।
हिंसा की चिंगारी से रह-रह कर लपटें उठती-
अलगाव-द्वेष से फैले असन्तोष की भरमार है।।

10ः-
बालकों में आदर्शों का निर्णायक होता है शिक्षक,
नैतिक मूल्यों उच्चचरित्र का परिचायक है शिक्षक।
स्वंय बनकर आदर्श कहलाता जो है- सुनायक....
अनुकरण प्रक्रिया का मापक बालकों का शिक्षक।।

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