------- शशांक मिश्र भारती
गांव में बहती नदी किनारे
एक महात्मा जी रहते थे,
सभी को कर्म अपना करना है
प्रवचन में प्रतिदिन कहते थे।
दूर-दूर से श्रोता थे आते
सुन-सुन उपदेश वापस जाते,
धन्य कर रहे थे धरा को
जो शरीर को साधन बतलाते।
प््राातः काल भ्रमण को जाते
नदी स्नान कर वापस आते,
एक दिन थे घूमने गए
नदी स्नान को उतर गए।
देखा केकड़ा पानी में डूब रहा
मानो महात्मा का मन ऊब रहा,
तुरन्त निकालने का ठान लिया
केकड़ा ने उंगली में काट लिया।
बार-बार वह पानी में गिरता
मन महात्मा का न फिरता,
उनने भी बचाने की ठानी
केकड़ा की काटने में सानी।
तभी वहां एक चरवाहा आया
यह सब देखा वह चकराया,
बोला-महात्मा क्या करते हो?
काट रहा पर जीवन धरते हो।
अपनी उंगली भी देखो जरा
समझाओं कुछ ये परम्परा,
बातें चरवाहे की सुनकर
महात्मा जी हल्के से मुसकराये;
बोले- बेटा है कर्म बड़ा
जो अपना-अपना सभी निभायें।
मैं तो अपना कर्म यहां पर
इसको बचाने का करता हंू,
इसका भी है कर्म काटना
पूरा जिसको यह करता है।
महात्मा जी के वचन सुने जो
चरवाहे के बात समझ में आई,
बच्चों कर्म है अपना करना
चाहे हो दुश्मन या भाई।।
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