नंगे हो या अधनंगे सबको बधाई होली की,
आतंकी हो या अत्याचारी दे शहनाई होली की।
आप भले ही रुठे रहते मुंह घृणा से फेर लेते,
है इस बार आपको भी दी बधाई होली की।
साल जो काटे भूखे पेट नींद बिन छत की,
महकाये जीवन ऐसी हो आये सगाई होली की।
घृणा-द्वेष डूब जाये प्रेम के रंग में इस बार,
ऋतु ऐसी छा जाये मन के सुहानी होली की।
नीले-पीले, हरे-गुलाबी सब बन जाएं एक,
भाई चारे का रंग ला सके अब बधाई होली की।
चेहरों की उदासी हृदयों में भरी कटुता,
गीले रंगों से बन सके प्रेम बधाई होली की।
मानव-मानव बनकर फिर मधु फाग सुनाये,
फैलाओ कुछ राग माधुरी भाई होली की।
शशांक मिश्र ’भारती’
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