पैसे का कमाल देखिये
गरीब का बुरा हाल देखिये।
चीर स्वंय जो उतारे
उस द्रोपदी को देखिये।
खड़ -खड़ पत्तों से होती
धूल -आंधियों की देखिये।
सो रहे क्यों चादर तान
हलाहल प्रदूषण का देखिये।
भागम भाग जीवन में जन
लक्ष्य को बही नदी देखिये।
भाप और विज्ञान से अंधे
घुड़-दौडी विष्व को देखिये।
शशांक मिश्र ’भारती’
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