Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पंछी हैं गाते

 

01-
पंछी हैं गाते
पन्थी आ सुस्ताते
वृक्ष मौन हैं।
02ः-
मुख एक है
सुनने को दो कान
समझे कौन
03ः-
कार्य अधिक
वायदे होते कम
राष्ट्र की मांग।
04ः-
बोलते कम
अनुभव से कार्य
नेतृत्व कर्ता।
05ः-
कोरे वायदे
कब तक चलते
पांव धरा पे।

06ः-
धरा कांपती
वृक्ष उखड़ते हैं
युवा मौन क्यों
07ः-
मेरा सुधार
मैं ही रहंू मौन
आयेगा कौन।
08ः-
उदारता है
अच्छी न लगती
एक हाथ से।
09ः-
धरती गोल
सजे सपने गोल
खोल न मुंह ।
10ः-
सहता रहा
बन सहनशील
जी न सका।
11ः-
सभी दे रहे
सांत्वना/पुरस्कार
न कि उद्धार।
12ः-
स्वंय तपे न
तपायें दूसरों को
क्या मिलेगा।
13ः-
आयोग बने
उन्हीं के हित में हैं
मरणोंपरान्त।
14ः-
आयोग जन्मा
अपराधी युवक
दुर्बल जांच।
15ः-
फंसता कौन
निरपराध मौन
सरल हृदया।
16ः-
उंगली उठी
सामने की तरफ
बकाया कहां
17ः-
आचरण है
हिमालय सा स्थित
गप्प न वार्ता।
18ः-
महान बने
तपस्या वर्षों कर
पोथी ही न।


19ः-
प्रेम का रस
अमोलक सुधा
विरले पाते।
20:-
बोलें अधिक
तोलें न बिल्कुल
आज के नेता

 

 

 

शशांक मिश्र ’भारती’

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