साल 2017 के आने की आहट
सूर्यास्त के बाद हो गयी
ये साल जाते – जाते अनेक
निर्णय और नये विश्वासों के
प्रश्न दे गया
भारत भारत बन उभरे
विश्व बने अनुगामी
पूर्ण विराम लगे
हिंसा प्रतिहिंसा
अनैतिकता अनाचार अकर्मण्यता पर
कालाधन के स्रोत सूखें
भ्रष्टाचारी सीखें
शिष्टाचार
जमाखोर सुधरें
जन मन और हर कण
सुख शान्ति और समृद्धि को
पा सके
यह साल मात्र तिथि बदलने
सन् बदलने तक ही
न संकुचित हो
विश्वास का नया सूर्य बन
हम सबको
कण -कण अणु – अणु को
नव संकल्पित राष्ट्र को समर्पित
दृढ़ निश्चयी बनायें
यही हैं मेरी सृष्टि
उसके सृष्टा से कामना
उसको कोटिश: प्रणाम कर मनोकामना
शुभकामनायें आप सबको
आपके अधूरे पूर्ण हों सपने
परहित समर्पित हों
पराये भी अपने हों
कटुता मिटे –
कर सद्कार्य
यशस्वी बनें।
शशांक मिश्र ’भारती’
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