शशांक मिश्र ’भारती’
सत्र समाप्ति की ओर है। सभी का पाठ्यक्रम भी समाप्ति की ओर है। ऐसे में समग्र पाठ्यक्रम के छात्र -छात्राओं द्वारा क्रमबद्ध अध्ययन, मनन व शिक्षकों के निर्देशन की आवश्यकता है ।विशेषकर बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी, श्रेष्ठ अंकों की प्राप्ति के लिए नियमित रूप से चलने वाली यह प्रक्रिया है, जो सदैव लाभकारी ही सिद्ध हुई है। यह प्रयोग मैंने स्वंय अपने कक्षा शिक्षण में कर लाभ उठाया है। 75 से 85 प्रतिशत तक रहने वाला मेंरा परीक्षाफल 90 से 100 तक रहने लगा है। विद्यालय का परीक्षाफल जो 32 से 45 तक रहता था वो भी बढ़कर 60 से 75 तक रहता है।
वर्तमान समय सत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण समय है। जिसमें थोड़ी भी वर्ष पर्यन्त के परिश्रम पर पानी फेरेगी। इसलिए आवश्यक हो जाता है, कि बचे हुए समय का पाठ्यक्रमानुसार विभाजन कर नियमित रूप से समयबद्ध तैयारी करवायी जाए। साप्ताहिक आंकलन हों। पारस्परिक प्रश्नोत्तर चर्चा कर ज्ञान के स्तर को परखा जाये। विषयाध्यापक भी नियमित रूप से मार्गदर्शन दें। उनके ज्ञान व प्रयोग के स्तर को साप्ताहिक, पाक्षिक या प्रीबोर्ड के रूप में जांचें परखें। उनकी त्रुटियों का रेखांकन कर उŸारपुस्तिका दिखाकर यथा समय अवगत करायें। बाद के लिए कुछ न छोड़े। तरुन्त ही उपचारात्मक प्रयास करें। ताकि छात्र -छात्राओं को अपनी कमजोरियों को दूर कर बोर्ड परीक्षा हेतु अपने को तैयार करने का पूरा अवसर मिल सके। कार्य को टालने की प्रवृŸिा सभी के लिए घातक होती है। अतः इससे स्वंय बचें और छात्र -छात्राओं को भी दूर रखें।
पाठ्यक्रम का समग्र व क्रमबद्ध अध्ययन महत्वपूर्ण उद्धरणों, वाक्यों, परिभाषाओं , रेखांकन, पुनः अध्ययन -श्रवण ही सच्ची सफलता का कारण बनता है। पूण सफलता किसी शार्टकट से नहीं आती। न ही ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे हानि ही होती है।शार्ट कट की असफलता दूसरों में दोष निकालने की प्रवृŸिा भी जगाती है। छात्र -छात्राओं का अपने शिक्षकों के प्रति दृश्टिकोण भी बदल देती है।
इसके साथ ही छात्र -छात्राओं के अन्दर से परीक्षाओं को लेकर उत्पन्न हो जाने वाले अनावश्यक भय को निकाल उनमें नयी प्रेरणा -प्राणशक्ति व आत्मविश्वास भरने की आवश्यकता है । ताकि वह परीक्षाकक्ष के वातावरण से सामंजस्य बिठा पूर्ण मनोयोग से समय का उचित विभाजन कर समग्र प्रश्नपत्र को विधिवत हल कर सकें।
साथ ही शासन -प्रशासन, परिशदीय परीक्षाओं के व्यवस्थापकों से आग्रह है; कि यदि उनमें लेशमात्र भी देश के नौनिहालों के सुन्दर भविष्य के प्रति चिन्ता -जागरूकता है, तो उनको परीक्षा कक्षों में स्वच्छ, निर्भीक व शान्त वातावरण उपलब्ध करायें। उन पर व उनके कक्षनिरीक्षकों पर कक्ष के अन्दर व बाहर किसी भी प्रकार का अनावश्यक -अनैतिक दबाव न पड़ने दंे। नकल माफियाओं, मात्र प्रमाणपत्रों की चाह रखने वाले स्वार्थी, लोलुपों व समाज विरोधियों को अपना स्वार्थ साधने का अवसर न दें। आवश्यकता होने पर ऐसे तत्वों के विरुद्ध उचित दण्डात्मक कार्यवाही करवायें।
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