समीक्षक-शशांक मिश्र ‘‘भारती’’
प्रस्तुत कृति डाॅ. भगवान सिंह भास्कर की लघुकथा कृति है। जो जीवन को आंख खोलकर पल-पल सतर्क रहकर जीने का संदेश देतीव जीवन में सार्थक हस्तक्षेप करती दिखती है।कृति में बहुरंगी कवर सहित कुल चैरासी पृष्ठों में छत्तीस लघुकथाओं को स्थान दिया गया है। अधिकांश लघुकथायें चरित्र प्रधान, संक्षिप्तता से युक्त, आमजन जीवन से जुड़े कथानक संवाद कुशलता, भाषा की सरलता, सहजता से प्रभावी बन गई हैं। लघुकथाकार ने चूंकि कल्पना की उड़ान न भरकर जीवन की वास्तविकता, समाज, देशकाल, परिस्थितियों को ध्यान में रखकर रचना की है। इसलिए यह न केवल मनोरंजन करती हैं, अपितु पाठकों को समाज में घटती संवेदनशीलता, मरते मूल्यों, चारित्रक अवमूल्यन, लोभ, ईष्र्या तू न गई मेरे मन से, सम्बन्धों के गिरते स्तर, कुकर्म, आतंक, अपराध, शिक्षा के अवमूल्यन, भटकते युवक, ढोंग, धर्मांधता, नर-नारी सम्बन्ध, नशा, कुसंगति, कामुकता, बनावटीपन, आदि विषयों पर ध्यान चाहने के साथ-साथ चिन्तन के लिए भी विवश करती हैं।
प्रथम व पुरस्कृत लघुकथा मजहब हो, आज का बेटा, मानवता के रिश्ते, या शीर्षक लघुकथा-हांथी के दो दांत, सभी प्रभावित करती हैं। इसके अलावा-धन्य कौन, हाय रे कफन, चोर की दाढ़ी में तिनका, उलाहना, स्पर्श सुख, मिसाल, बुढ़ापा, अनोखा उदाहरण, शराब, होली का रंग, लिखावट, दिखावा, पागल कौन, चरित्र, गुरूदक्षिणा, आरोप, ममहर की कसम, काल, संवेदना, जेल में रंगदारी, आतंकवादी, कुकर्म का फल, काल के गाल, कुसंगति का फल, आज की पढ़ाई, दोषी कौन, दूल्हा बंधक, फोन का चस्का, कुपुत्र, उधार, देना भूला हंू लेना नहीं, पति-पत्नी समान लघुकथायें संकलित हैं। जो पाठकों को उनके आस-पास घट रही घटनाओं, चरित्रों, कारगुजारियों से जोड़ती हैं। उनको मन से छूने की चेष्टा करती हैं। उनकी आंख लख्य पर केन्द्रित करने का प्रयास हैं। अनुभवों से जोड़ मानवीय सरोकारों की ओर ले जाकर वर्तमान की कटु सत्यता से परिचित कराती हैं।
लेखक आत्माभिवयक्ति में लिखता है कि ‘‘मेरी लघुकथाएं सत्यप्रधान घटना होती हैं ये जीवन, समाज, परिवार और अपने आस-पास का सही चित्र उकेरती हैं। मेरी लघुकथाएं परिवेश से पैदा होती हैं’’ निश्चय ही लघुकथाओं को पढ़ने से इन बातों की पुष्टि होती है। यह भी स्पष्ट है कि वर्तमान सामाजिक सरोकारों, परिस्थितियों, देश के हालात से प्रभावित हो रचनाकार ने ये लघुकथाएं लिखी हैं।
कृति का सर्मपण रचनाकार ने अपने नन्हें-मुन्हें पोते-पोतियों को किया है पुस्तक संयोजन आकर्षक है। डाॅ. नरेश पाण्डेय चकोर, डा. सतीशराज पुष्करणा व उमेशकुमार पाठक रवि के कवर पृष्ठों में दिये मन्तव्य कृति को महत्वपूर्ण बनाने के साथ-साथ समझनें में सहायक हैं। वही प्रकाशक प्रभात रंजन सिंह सुधांशु लघुकथाओं को सार्वकालिक महत्व का कहते हैं। उनके मत से यदि इनमें निहित आदर्शों, उपदेशों एवं सावधानियों पर सम्यक् ध्यान देंतो हमारा समाज पतन के गर्त में गिरने से बच जायेगा। हमारी राष्ट्रीय एकता, अखण्डता, कभी खण्डित न होने पायेगी।
डा. सतीशराजपुष्करणा इन लघुकथाओं में सांप्रदायिक एकता आज की नालायक संतानें, परिवारिक रिश्तों में आयी छीजन, आज के शिक्षक-छात्रों की स्थिति, यौनिक स्तर पर भ्रष्टाचार, पुरुषों के चरित्रहनन , आज के दोस्तों के बनावटीपन इत्यादि विविध विषयों को मुख्य विषय मानते हैं। कृति का मूल्यांकन करते समय उमेश कुमार पाठक रवि इन लघुकथाओं को शुष्क होती जा रही संवेदना, भ्रष्ट होते जा रहे सामाजिक सम्बन्धों, निरर्थक बनती जा रही भाषा और मानवीय रिश्तों के अन्र्तद्वन्द में एक सार्थक हस्तक्षेप मानते हैं वहीं लघुकथा को आज की एक महत्वपूर्ण विधा मानते हुए लिखते हैं कि‘‘ पद्य और कविता के क्षेत्र में जो स्थान मुक्तक दोहों का है। वही स्थान गद्य के क्षेत्र में लघुकथाओं का है।’’
कुल मिलाकर इस कृति की लघुकथायें आमजनमानस से जुड़े विषयों, समस्याओं, उसके भोगे यर्थाथ, मान्यताओं, मूल्यों से निकली होने से उसको पठन पाठन और मनन की ओर ले जाने में समर्थ दिखती हैं। साहित्य जगत में स्वागत होगा।
कृतिः- हांथी के दो दांत (लघुकथा संग्रह)
कृतिकारः- डा. भगवान सिंह भास्कर
मू.80/ पृ. 86 संस्करणप्रथमः-2010
प्रकाशकः-भास्कर साहित्य भारती, प्रखण्ड कार्यालय के सामने,लखरांव सिवान-841226
बिहार
समीक्षकः- शशांक मिश्र ‘‘भारती’’ दुबौला-रामेश्वर-262529 पिथौरागढ़ उ. अखण्ड
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