सत्ता सुख का स्वाद कुछ यूं छा गया
सेवक जनता चढ़ उसी के सीने आ गया,
करता सेवा-विकास की बड़ी-बड़ी बातें
स्वंय विकसित हुआ जन विकास खा गया,
बेईमान जो थे हुए और अधिक बेईमान,
छूटे वो, जेल से ईमानदार धरा गया,
राई का सफर पहाड़ तक जा पहुंचा
जिधर देखो कुहासा भ्रष्टाचार का छा गया,
दुख तो इस बात का ही है हम सबको
रखवाला ही जब खेत सारा खा गया,
देखा स्वप्न पूरा होता कहां और कैसे
टूट कच्चे घड़े सा विखर जो गया।
शशांक मिश्र ’भारती’
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