Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शान्ति का पुष्प

 

जो आज न हो सका
फिर कब हो पायेगा
यदि अभी गिर गया
वह कब उठ पायेगा
बदल गयी हैं सभी
यहां की परिस्थितियां
इनसे मुक्ति की क्या
आयेगीं अब मस्तियां
हिंसा की फैली ज्वाला
कब तक बुझ पायेगी
अहिंसा की ज्योति फिर
कैसे जगमगायेगी
एक दिवस तो
यहां का हिंसा रूपी
छंटेगा कुहासा
फिर यहां से
उठेगी
नूतन सुबह की
मनोरम आशा
जो भटक गये
अपने पथ से
उनको सत्पथ दिालायेगी
दिखलाकर-
शान्ति का पथ
देश महकायेगी

 

 

 

शशांक मिश्र ’भारती’

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