मैं -
सूर्योदय से पूर्व
दिखायी देने वाली
उस रक्त वर्णी आभा का
स्वागत करता हंू
किन्तु
आज भी इच्छाओं को
पूर्ण सन्तुष्टि नहीं मिल सकी
प्यासी हैं आंखें
छेखने को उस सौंन्दर्य को
जे सन्देष देती है
स्ूर्य के क्षितिज पर आने से
पूर्व उसका।
शशांक मिश्र ’भारती’
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