विज्ञ जन समय व्यर्थ में बिताया नहीं करते
अज्ञानियों सा द्वेष में दिन -रात लगाया नहीं करते,
भविष्य के फल को टाल न सकता कोई
प्रसन्नचित आगत में अनागत रोपा नहीं करते,
क्रीडाभूमि जग में जीवन अबूझ पहेली सा
खोकर स्वंय को व्यर्थ में उलझाया नहीं करते,
गुणवान सिंह पुत्र वनराज है कहलाता
योग्य कभी गधी सुत सा बोझ ढोया नहीं करते,
लाये थे क्या ? जो साथ ले जाओगे
समझदार कभी धन के पीछे भाग नहीं करते,
जले पर नमक छिड़कने वालों की ही कमी नहीं
हंस या बगुला किसी को हृदयाघात दिखाया नहीं करते,
तन जो है कच्चे घट सा क्षण भंगुर
ज्ञानी इसके सौंदर्य पर इठलाया नहीं करते,
करने को ता हो सकती है दिन भर कांव-कांव
विवेकषील बिन ढपली राग सुनाया नहीं करते।
शशांक मिश्र ’भारती’
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