विकसित करने को वह विकास की गंगा बहायेंगे
गरीबी न हटे तो न सही वो गरीब ही मिटायेंगे।
क्या करेंगे सिद्धान्तों नैतिकता की थालियों का
स्वार्थ-परस्ती में पड़कर जो धनवान कहे जायेंगे।
योग्यता का महत्व भी दिखता कुछ इस तरह है
बिन चीर की द्रोपदी वह मंच पर दिखायेंगे।
आत्महत्या कृशकों की से हैं भरे रहते समाचार
उस भारत को वह नया भारत बनायेंगे।
अन्याय अनीति अनाचार का ताण्डव रोकने को
सावधानी से कहिये अन्यथा वो कहीं फंसायेंगे।
जनसक्ति का आहृवान कर सके कविता तो
समूह के समूह निकल उन्हें उसी दल-दल में गड़ायेंगे।
सोचा था कभी जो देश का आजादी के पहरुओं ने
देशवासी कर्मवीर बन स्वंय वैसा ही सजायेंगे।
शशांक मिश्र ’भारती’
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