विश्वास रूपी दीपक जो जलाते रहें ।
मंजिल की समीपता आप पाते रहें।
गीत विश्वासों के निःस्वर होते नहीं ।
सुबह के प्रिय दृष्य आप गाते रहें।
हृदय की कुण्ठा का पास आना क्या
सत्य पर निष्ठा जब तक बनायें रहें।
तृष्णा के बढ़ने से होता भी क्या है~
सिन्धु सच का जब तक लहराता रहे।
छोड़ सभी मनोविकारों को अपने
राग विश्वासों के यूँ ही गाते रहें।।
शशांक मिश्र ’भारती’
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY