Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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विश्वास रूपी दीपक जो जलाते रहें

 

विश्वास रूपी दीपक जो जलाते रहें ।
मंजिल की समीपता आप पाते रहें।

 


गीत विश्वासों के निःस्वर होते नहीं ।
सुबह के प्रिय दृष्य आप गाते रहें।

 


हृदय की कुण्ठा का पास आना क्या
सत्य पर निष्ठा जब तक बनायें रहें।

 


तृष्णा के बढ़ने से होता भी क्या है~
सिन्धु सच का जब तक लहराता रहे।

 


छोड़ सभी मनोविकारों को अपने
राग विश्वासों के यूँ ही गाते रहें।।

 

शशांक मिश्र ’भारती’

 

 

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