Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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व्यथा

 

 

इच्छा हाती है कि-
उतार दूं मन की व्यथा को
जो-
उत्पन्न होती है
कश्मीर की करुण दशा को देख
बच्चों के करुण क्रन्दन को सुनकर
और-
आतताइयों से खण्डहर बने देख उस चमन को
जहां-
शान्ति का वातावरण था
हिंसा का साकार रूप देखकर
किन्तु-
न ही दे पाता हूँ मै उसे
कविता का रूप
क्योकि-
समक्ष आजाती हैं
कुछ संघर्षमय परिस्थितियां
जो विमुख कर देती हैं
उस-
करुण दृश्य से
और-
भूल जाता हूँ उस व्यथा को
जिसे-
उतारना चाहता हूँ-
कागज पर।

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