चार क्षणिकाएं-
1ः-
वे-
बड़े ही निष्ठावान कहलाते हैं,
शायद-
वर्ष में एक दिन आकर
कागज के पुष्प जो चढ़ाते हैं।
2ः-
उन्होंने-
सत्यनिष्ठा दर्शायी है,
फ्रेम में अपनी तस्वीर
उनकी दीमकों ने खायी है।
3ः-
उन्होंने-
कर्त्तव्यनिष्ठा की ध्वजा
फहरायी है,
अनुदान तख्त का
पर तख्ती लगवायी है।
4ः-
हमारे-
राष्ट्रपिता ने जिनको
सबकुछ सिखलाया,
आम जनता ने उन्हें
पद की वर्षा से धुला पाया।
शशांक मिश्र ’भारती’
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