Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दुष्यंत की अंगूठी

 

मेरी ठिठकी हुई पलकों में
सदियों से उलझा एक लम्हा
जिसे अपनी आँखों से छु कर
तुने मेरे नाम कर दिया था
और तेरे अश्क के एक कतरे ने
तुझसे छुप कर
मेरी आँखों में पनाह ली थी
इश्क की अधूरी चांदनी का
हिसाब मांगने ज़िद पे उतर आया है
सिसकने लगा है मेरी हथेली पे
वो बदनसीब कतरा भी
दुष्यंत की अंगूठी की तरह

 

 

 

सीमा गुप्ता

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