अहसास अपनों का गम अपने ही जाने गैर उन्हें क्या जानेंगे वक्त की मार पड़ेगी जब इस दर्द को पहचानेंगे दुनिया की इस भीड़ को देखो मानवता खो जाति है जुल्म सितम और अत्याचार को देख के ये रह जाती है आज नहीं तो कल ये ही इस बात को मानेंगे सुख और दुख तो हर इन्सां के जीवन में आता है मानव इस दुनिया में रहकर देख नहीं पाता है जिसने इनको ज़मीं पे भेजा वो ही इन्हें उबारेंगे उसका हर दुख दूर करो जो कि मजबूर बेचारा है अन्तर्मन के पट खोलो तुम यह अधिकार तुम्हारा है देख के मत अन्धे बन जाओ सोचो किसे संवारेंगे अपनों का गम अपने ही जाने गैर उन्हें क्या जानेंगे वक्त की मार पड़ेगी जब इस दर्द को पहचानेंगे
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY