Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हथेली पे उतारा हमने

 

रात भर चाँद को चुपके से
हथेली पे उतारा हमने
कभी माथे पे टिकाया
कभी कंगन पे सजाया
आँचल में टांक के मौसम की तरह
अपने अक्स को संवारा हमने

रात भर चाँद को चुपके से
हथेली पे उतारा हमने
सुना उसकी तन्हाई का सबब
कही अपनी दास्तान भी
तेरे होटों की जुम्बिश की तरह
पहरों दिया सहारा हमने

रात भर चाँद को चुपके से
हथेली पे उतारा हमने
अपने अश्को से बनाके
मोहब्बत का हँसीं ताजमहल
तेरी यादों की करवटों की तरह
यूँ हीं एक टक निहारा हमने

रात भर चाँद को चुपके से
हथेली पे उतारा हमने

 

 

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