जिस्म की दीवारों से
मिट्टी खरोंच कर
रूह-दरिया के किनारों पर
खनकते साज़ों की रफ़्तार पर
उजले चाँद के लिबgास पर
सहरा की बिलखती प्यास पर
सियाह रात की अज़ाब साँसों की
परवाज पर
लिखा है इश्क़-मंतर..
इसी. तिलिस्म को पढ़ कर...
रस्मों की दीवारों को यक्सर ढा कर
सोचती हूँ ..कुछ लिखूँ
और
इश्क की बुन्याद से फूटी
हर सूं फैली मिट्टी की सोंधी खुश्बू....
मेरे शब्दों को लोबान बना दे..
(Seema)
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