जैसे मुर्दा कर दिया था इश्क के इलज़ाम ने
मुझ में साँसें फूँक दी हैं आप के पैगाम ने
अब्र, आंचल, पेड़, पत्ते, सायबाँ, कुछ भी नहीं
किस जगह ला कर मिलाया है हमें अय्याम ने
तेरे आने की खबर ने देख क्या क्या कर दिया
कितने ही दीपक जला डाले हैं मेरी शाम ने
रात भर जागा किए हैं तेरी यादों के तुफैल,
कितने ख्वाबों को बुना है इस दिले नाकाम ने.
मौत भी नाकाम हो कर लौटती है रोज़ रोज़
मुझको जिंदा जो रखा है इक तुम्हारे नाम ने
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY