"क्यों है" तेरे बगेर तनहा जिन्दगी मे मेरी कुछ कमी सी क्यों है , तेरी हर बात मेरे जज्बात से आज फ़िर उलझी सी क्यों है... तु मुझे याद ना आए ऐसा एक पल भी नही संवारा मैंने, गुजरते इन पलों मे मगर आज फ़िर बेकली सी क्यों है...... बेबसी के लम्हों मे आंसुओं का वो मंजर गुजारा मैंने , उठती गिरती पलकों मे मगर आज फ़िर कुछ नमी सी क्यों है......... मोहब्बत मे तेरा नाम लेकर तेरी बेरुखी को भी रुतबा दिया मैंने, हर एक आहट पे तेरे आने की उम्मीद आज फ़िर बंधी सी क्यों है.......... गिला तुझसे नही बेवफा सिर्फ़ अपनी मज्बुरीयों से किया मैंने, वक्त से करके तकरार इन सांसों की रफ्तार्र आज फ़िर थमी सी क्यों है......
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