Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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"नहीं"

 
"नहीं"  देखा तुम्हें , चाहा तुम्हें , सोचा तुम्हें , पूजा तुम्हें, किस्मत मे मेरी इस खुदा ने , क्यों तुम्हें कहीं भी लिखा नहीं . 
रखा है दिल के हर तार मे , तेरे सिवा कुछ भी नही , किस्से जाकर मैं फरियाद करूं, हमदर्द कोई मुझे दिखता नही.  बनके अश्क मेरी आँखों मे, तुम बस गए हो उमर भर के लिए , कैसे तुम्हें दर्द दिखलाऊं मैं , अंदाजे बयान मैंने सीखा नही. 
नजरें टिकी हैं हर राह पर , तेरा निशान काश मिल जाए कोई, कैसे मगर यहाँ से गुजरोगे तुम, मैं तुमाहरी मंजील ही नही. आती जाती कोई कोई अब साँस है , एक बार दिल भर के काश देखूं तुझे, मगर तू मेरा मुक्कदर नही , क्यों दिले नादाँ ये राज समझा नही ..............
 


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