सावन का आना और इस कायनात का नख शिख तक अतुलनीय श्रृंगार हो जाना ,
रिमझिम पड़ती फुहारों से प्रकृति जैसे ख़ुशी से झूम उठती है , विशाल नीला स्वच्छ गगन, यहाँ वहां उड़ते रुई के फाहों जैसे उड़ते बादल के टुकड़े, निर्मल जल से कल कल करती नदियाँ, हरी भरी विशाल वादियाँ, पर्वतों की आगोश से लिपटकर व्याकुल बहते झरने, और उस पर हरे भरे विशाल दरख्तों के साए तले सांस लेती ये विशाल धरा , और रंग बिरंगे पंछियों का कर्ण प्रिय कलरव, प्रकृति का ये अद्भुत सौंदर्य देखते ही बनता है . ऐसा लगता है जैसे सावन के आते ही धरा से आसमान तक कण कण मिलकर प्रकृति की गोद भराई करने चले आये हैं . प्रक्रति का इस अतुलनीय सौन्दर्य का शब्दों में वर्णन करना बेहद कठिन है .
बर्फीली पहाड़ियों से उठ कर , अधखुली आँखों से झांकती भोर की निष्पक्ष किरणों से जब कुनमुनाता है ठहरा सागर , नर्म घास की अंगड़ाइयों से महकने लगती है फिजायें , धीमी गति से चुपचाप फिर ,कहीं हवाएं लेती हैं करवटें, कायनात की आगोश में सिमटा ,पवित्र सौंदर्य का दिलकश मंजर, धरती के अलसाये बदन पे, जैसे लिखा रहा हो जीवन बिंदु की एक नई इबादत . प्रक्रति का ये मोहक स्वरूप शायद हर कवी की कल्पना में होगा.
यही नहीं सावन मास स्त्रियों के लिए भी अपना एक अनोखा ही महत्व रखता है जिसमे नवविवाहित स्त्रियों को अपने पति से अलग मायके में रहना पड़ता है। अपने प्रिये दूर नवविवाहिता का दिल में प्रिय मिलन की आस लिए मायके में सखियों संग लोक गीतों का आनंद लेते हुए विशाल पेड़ों पर सुशोभित तरह तरह के झूलों पर झूला झूलना भी बेहद रोमांचक हो जाता है। कुंवारी लड़कियों का रंग बिरंगी चूड़ियों के प्रति बेपनाह आकर्षण भी देखते ही बनता है।
सावन के आगमन का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है , पौराणिक कथाओं और हिन्दू परम्पराओ के अनुसार सावन महीने में महादेव यानि शंकर भगवान् की विशेष रूप से पूजा अरचना की जाती है और सारा वातावरण जय शिव शंकर के उद्घोष से शिवमय हो जाता है । भगवा चोला धारण कर श्रद्घालु कांवर में गंगा का पवित्र जल लेकर मीलों दूर का पैदल सफर कर देश में जगह जगह शिव मंदिरों में जल चढ़ाने के लिए उतावले नज़र आने लगते हैं। सावन मास धार्मिक उत्सव के रूप में पुरे उत्साह से मनाया जाता है। हरियाली तीज, नाग पंचमी , रक्षा बंधन , श्रावणी मेला , कजरी पर्व जैसे उनके पर्व सावन मास में पुरे हर्ष उल्लास से मनाया जाता है।
Seema Gupta
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