उजालों के बदन पर अक्सर
उम्मीदों के आँचल जलते हैं
जाने कितनी ख्वाइशों के छाले
पल पल भरते पिघलते हैं
बिखर जाते हैं पल में छिटक कर
हथेलियों से सब्र के जुगनू
दिल में कुछ बेचैन समंदर
बिन आहट करवट बदलते हैं
ठिठकी हुई रात की सरगोशी में
फ़ुट फ़ुट बहता है दरिया-ए-जज्बा
शिकवे आंसुओं की कलाई थाम
रोज मेरे सीराहने पे आ मिलते हैं
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