Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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माँ

 
नि:शब्द है 
वो सुकून जो मिलता है माँ की गोदि मे सर रख कर सोने मे वो अश्रु जो बहते है माँ के सीने से चिपक कर रोने मे वो भाव जो बह जाते है अपने ही आप वो शान्ति जब होता है ममता से मिलाप वो सुख जो हर लेता है सारी पीडा और उलझन वो आनन्द जिसमे स्वच्छ हो जाता है मन 

....................................................... ........................................................ माँ  
रास्तो की दूरियाँ फिर भी तुम हरदम पास जब भी मै कभी हुई उदास न जाने कैसे? समझे तुमने मेरे जजबात करवाया हर पल अपना अहसास 
और याद  हर वो बात दिलाई  जब मुझे दी थी घर से विदाई तेरा हर शब्द गूँजता है कानो मे सन्गीत बनकर जब हुई जरा सी भी दुविधा दिया साथ तुमने मीत बनकर दुनिया  तो बहुत देखी पर तुम जैसा कोई न देखा तुम  माँ हो मेरी कितनी अच्छी मेरी भाग्य-रेखा पर तरस गई हूँ 

तेरी  उँगलिओ के स्पर्श को जो चलती थी मेरे बालो मे तेरा वो चुम्बन जो अकसर  करती थी तुम मेरे गालो पे वो स्वादिष्ट पकवान जिसका स्वाद नही पहचाना मैने इतने सालो मे वो मीठी सी झिडकी वो प्यारी सी लोरी वो रूठना - मनाना और कभी - कभी तेरा सजा सुनाना वो चेहरे पे झूठा गुस्सा वो दूध का गिलास जो लेकर आती तुम मेरे पास 
मैने पिया कभी आँखे बन्द कर कभी गिराया तेरी आँखे चुराकर  आज कोई नही पूछता ऐसे ??????????????????? तुम मुझे कभी प्यार से कभी डाँट कर खिलाती थी जैसे  
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5.पीड पराई  
  गम की लू से सूखे पत्ते के समान पतझड मे डाली से टूटकर गिरते किसी फूल की कली सी जिसकी खुशबू नदारद सहमी सिमटी पहाड सी जिन्दगी कुरलाती है अपने आप मे एक व्यथा बताती है क्या........? यही है जीवन कि ........ स्वयम को करदो अर्पण केवल किसी की कुछ पल की तस्सली के लिए जीवन भर जिल्लत का बोझ उठा कर जिए नही जाने कोई उस पीडा और जिल्लत की गहराई जिसने बना दिया सबसे पराई न घर मिला न चाहत न ही मन मे मिली कभी राहत 

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