Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कट ही जाये अगर ज़बान भी क्या

 

 

कट ही जाये अगर ज़बान भी क्या

फिर मिलेगा हमें वो मान भी क्या

 


आदमीयत के मोल जो मिली हो

दोस्तो ऐसी कोई शान भी क्या

 


मेरे पैरों में आज पंख लगे

अब ज़मीं क्या ये आसमान भी क्या

 


छोड दें गर ज़मीन अपने लिये

ऐसे सपनों की फिर उड़ान भी क्या

 


और के काम आ सके न कभी

ऐसा इंसान का है ज्ञान भी क्या

 


भाग के गर मुसीबतों से कहीं

बच ही जाये तो ऐसी जान भी क्या

 


एक चिंगारी से लगी थी आग

अब बचेगा मेरा मकान भी क्या

 

 

 

शिज्जु शकूर

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