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अगले बरस तुम फ़िर आना

 

-शिल्पा शर्मा

 



ऐ लौटती हुई मानसून की हवाओं
दो आँखे राह तकें, कहना उसे
हरे सफ़ेद पहाड़ ये तुम्हे बुलाते, कहना उसे
एक दिल जो बेकरार है, धड़कनो को इंतज़ार है
वो जो जीवित है अभी, संजीवनी है पास उसके
या किसी का प्यार है
ये दिन कठिन कैसे कटे, कहना उसे
उम्मीदों के सिराज, जलाये हुए है
राह में पलकें , बिछाये हुए है
लबों पे तब्बसुम, सजाए हुए है
आशा की ही डोर थामके, कहना उसे
घाव वो सब से छुपाए, तस्वीर इक दिल मे बसाए
यंत्रवत जो विचरती है, यंत्रणा वो सब सहती है
ख़ामोश बस इक आह उठे, बिना कोई आँसू बहाए
बयाँ कभी जो हो न सके, कहना उसे
बोया था जो बीज हमने, वृक्ष अब वो सामने
खिले फूल और फ़ल लगे, उसी शाखा पर नीड़ उसका
वहीं दिवानी चिड़िया चहके, कहना उसे
हाल जो अगर पूछे, सच न तुम उसे बतलाना
उसे दर्द न हो कहीं, बस प्यार से उसको सहलाना
ये पल जाने कब चुके, कहना उसे
राह मिले तो आना, चाह रही तो आना
दिन भले न संग बीता, शाम ढले पर आना
ये गम की छाया तो हटे, कहना उसे
भेजी थी जो उसने दक्षिण से, सारी कायनात से छुप के
वो नेह की बदली बरस गई
जलती पगली के तन पे, कहना उसे
वो जो तन्हा सा कहीं जी रहा होगा
शोले पिघला के वो भी पी रहा होगा
कुछ पल वहाँ तुम रुक जाना
चंद बूँदें वहाँ भी बरसाना
कि तपिश थोड़ी तो मिटे,कहना उसे
ऐ लौटती हुई मानसून की हवाओं
अगले बरस तुम फ़िर आना, जो हम दोनो साथ हुए तो
चुपके से हमे भीगोते जाना, उसकी कुछ मजबूरियाँ
फ़िर जो उसकी राह रोकें और कहीं वो न आ पाए
तो उसकी इक झलक, संग अपने लेते आना
लेकिन तुम जरूर आना
आँखें जब तक न थकें, सांसे जब तक न रुकें
जिस्म कभी मिट्टी हो जाए
बस रुह प्यासी न भटके, कहना उसे
वो जो दूर है और पास भी
तन्हा तन है पर साथ भी
कोई नहीं जो मेरा और सबसे खास भी
अभी भी उसकी आस में
कोई पगली है पहाड़ पे
ऐ लौटती हुई मानसून की हवाओं
कहना उसे....

 

 

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