Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं, दहलीज का पत्थर

 
मैं दहलीज का पत्थर आगन्तुक का आदर/अनादर का प्रत्यक्ष साक्षी मंजिल के हर द्वार की चैखट पर वफादार प्रहरी की तरह मेरी उपस्थिति अनिवार्य ढेरों चरण पादुकाएँ खुलती मुझ पर असंख्य ठौकरें खाकर भी देता किसी के अन्दर होने/न होने का अहसास फिर भी कोई प्रवेश कर पहुंचता लक्ष्य तक निभ्रांत कोई ठौकर खाकर गिर पड़ता या फिर ढेरों प्रश्न संजोकर मन में चला जाता वापस अपने घर।

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