Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शमशान-सा जल रहा है मेरा गाँव

 
शमशान-सा जल रहा है मेरा गाँव। रेगिस्तान-सा ढल रहा है मेरा गाँव।। फूटी कौड़ी लेकर दुनियाँ के मेले में। अनजान-सा चल रहा हैं मेरा गाँव। चाँद तारों-सी चिमनियों की रोशनी में आसमान-सा फल रहा है मेरा गाँव जब से फँसा साहूकार के चक्कर में मेहमान-सा पल रहा है मेरा गाँव। अंधाधुंध बढ़ रहा है शहरीकरण। बनियान-सा गल रहा है मेरा गाँव भेड़ियों की तादाद बढ़ रही है ‘शिवा’ खलियान-सा खल रहा है मेरा गाँव। 

 
‘‘सौरम घर’’ 68, तिलक नगर, झालावाड़ (राज.) 326001

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