भोर ...
जब सूरज की, अलसाई किरणे
नर्म हरी घास पर -
अपने आगमन की कहानी लिखती है
वो एक सलोना सपना होता है …..
जिन्दगी की किताब में ,
यही तो,
बचपना होता है ,,,,
@@@
दोपहर ....
सूरज ऊपर चढ़ता है -
पेड़ों की हरी पत्तियों से ,
आलिंगन कर _
ऊर्जा मढ़ता है
वक्त की किताब में
जवानी पढ़ता है ...
@@@
शाम ...
धूप,
पेड़ की फुनगियों पर
थककर लेट जाती है
ढलने को ,
थके- हारे कदमो से ....
चलने को ...
बुढापा -इसकी
परिभाषा है,
ये जिन्दगी के किताब की ...
अंतिम भाषा है .
शिव कुमार यादव
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