Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मुश्किल मे अपनी जान को डाले हैँ अभी तक

 

मुश्किल मे अपनी जान को डाले हैँ अभी तक।
हम अपने दोस्तोँ के हवाले हैँ अभी तक।

 

कट भी गये जो सिर ये हमारे तो क्या हुआ।
दस्तार तो हम अपनी सम्भाले हैँ अभी तक।

 

गुजरे थे कभी साथ मे जिस राह से हम तुम।
राहोँ मे उसी बिखरे उजाले हैँ अभी तक।

 

इक रोज उन्हे सच का दिखाया क्या आईना।
पत्थर वो मिरी सिम्त उछाले हैँ अभी तक।

 

बातेँ बनाये लाख सियासत बडी बडी।
छिनते तो मुफलिसोँ के निवाले है अभी तक।

 

दिल का पिला के खुन हम औलाद के जैसे।
सीने मे तेरे दर्द को पाले हैँ अभी तक।

 

देते हैँ यही कह के अपने दिल को तसल्ली।
दिल से नही वो हम को निकाले हैँ अभी तक।

 

 

 

'SHIV SHANKAR YADAV'

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ