Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आज का इंसान ये दौलत मे अंधा हो गया।

 

आज का इंसान ये दौलत मे अंधा हो गया।
चार पैसोँ क्या मिले अपनोँ से रुसवा हो गया।

 

 

बेटियोँ को छुट देने पर यही पाई सजा।
खाक मे इज्जत मिली दस्तार मैला हो गया।

 

 

ना रहा कोई भरत और ना रही सीता कोई।
राम भी कलयुग मे अब रावण के जैसा हो गया।

 

 

हिन्दु मुस्लिम सिक्ख ईसाई बन गया इंसान अब।
होके भी इंसान ये इंसाँ से तनहा हो गया।

 

 

आज के इस दौर मे रिश्तोँ की कीमत कुछ नही।
बाप माँ भाई बहन से बढके पैसा हो गया।

 

 

शायरी करते हुए 'शिव' ने बदल डाला ज़मीर।
कल वो कैसा होता था और आज कैसा हो गया।

 

 

 

'शिव'

 

 

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