Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बहुत नाराज हुँ मै जिन्दगी से

 

बहुत नाराज हुँ मै जिन्दगी से।
गुजरता दिन नही है अब खुशी से।


चला जाऊँगा दुनियाँ छोड कर मै।
खुशी मिल जाये शायद खुदखुशी से।


 

दया की भीख गर देती है दुनियाँ।
नही माँगुगा मै कुछ भी किसी से।


मेरी दुनियाँ है जिस लडकी ने लुटी।
करुँगा ब्याह तो केवल उसी से।


नही सह पाऊँगा फाँकाकशी जब।
निकल आऊँगा उस दिन शायरी से।


मेरे अँधियार जीवन का अँधेरा।
नही मिट पायेगा इस रौशनी से।


 

मेरी जानम ने कर ली बेवफाई।
बहुत उकता गई थी आशिकी से।

 


'शिव'

 

 

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