Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बेटियाँ

 

डर डरके आज सडकोँ पे चलती हैँ बेटियाँ।
जुल्मो सितम की आग मे जलती हैँ बेटियाँ।

 



बनकर के प्रेमबदली बरसती हैँ उम्र भर।
खुशियोँ के उजाले को तरसती हैँ उम्र भर।
नफरत के अन्धकार मे पलती हैँ बेटियाँ।

 


इक अजनबी इंसान को कहती हैँ साजना।
मुश्किल से छोडती हैँ ये बाबुल का आँगना।
रुखसत के वक्त हाथ ही मलती हैँ बेटियाँ।


 

 

करने की जो भी ठान लेँ वो कर के दिखा देँ।
अपने कदम के नीचे ये पर्वत भी झुका देँ।
मकसद से कभी भी नहीँ टलती हैँ बेटियाँ।

 


औलाद का हर फर्ज निभाती हैँ बखुबी।
माँ बाप के चेहरोँ को हँसाती हैँ बखुबी।
रिश्तोँ के नेक साँचे मे ढलती हैँ बेटियाँ।

 


देवी को पुजते हैँ ये मन्दिर के पुजारी।
सीता मे भी इक नारी है दुर्गा मे भी नारी।
फिर क्युँ इसी समाज को खलती हैँ बेटियाँ।

 


'शिव'

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