Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भारत माता के चरणन मे जान कईऽदा

 

भारत माता के चरणन मे जान कईऽदा।
अपने देशवा पे खुद के कुरबान कईऽदा।




धरती के खातिर तु खुद के मिटा दऽ।
देशवा पे आपन जिनगिया लुटा दऽ।
धरम करम सबे देशवा के मानऽ।
फरज के आगे अपन जिनगी भुला दऽ।
खुद ही खुद से तु खुद के अंजान कईऽदा।




 

अपना करनियाँ पे लागे पछताये।
भागा भागा फिरे अपन जिनगी बचाये।
बैरी दुश्मनवाँ तोहरा गोडवा के नीचे।
जिनगी के भीखि माँगि माँगि अभुवाये।
जाके सीमवा पे अइसन तुफान कईऽदा।




 

जाके दुश्मनवन के टैँकर उडा दऽ।
नाली बन्दुकिया वाली मोहेँ मे भिडा दऽ।
प्यार वाली बात नईखे आवे ओकरा समझ।
लेजा आपन शेर ओन्हनी कुकूर से लडा दऽ।
मारि मारि दुश्मनन के बेजान कईऽदा।




रखीया बहिनिया से हाथ मे बँधा ल।
पापी दुश्मन से अपना बहिनी के बचा ल।
वचन निभावे वाली रीति चली आइल।
कइले बाडा वादा जउना ओकरा के निभा ल।
अपने बहिनी पे एतना एहसान कईऽदा।




फिर नाही भुलके कभो उ एहजा देखे।
बम त बा दुर एगो पत्थरा ना फेँके।
अबकी के बारी ओकर हाल अइसा होखे।
बिना हाथ पैर साला चली मेके मेके।
बैरी दुश्मन के जीयब जियान कईऽदा।


 

 

'शिव'

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