Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बिता न कभी वक्त मेरा सादगी के साथ

 

बिता न कभी वक्त मेरा सादगी के साथ।
करता रहा मज़ाक खुद ही जिन्दगी के साथ।

 

होता है जैसे वास्ता प्यासे का कुँए से।
नाता वही रहा है मेरा त्रिश्नगी के साथ।

 

दे दुँगा अपनी जान भी मै ये खुशी खुशी।
मिलियेगा अगली बार अगर बेरुखी के साथ।

 

आँखो से मेरी दुर वो जब से चली गई।
होती है बातचीत मेरी शायरी के साथ।

 

मिलते हैँ हर इक रोज मुझे चोर लुटेरे।
होती नही है भेँट कभी आदमी के साथ।

 

जीवन की राह मे कोई साथी नही मिला।
फिरता रहा जहान मे आवारगी के साथ।

 

बेख़ौफ, बेक़रार सा तनहा ही रात भर।
लडता रहा चराग़ मेरा तिरगी के साथ।

 

 

 

'शिव'

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ