Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बूढ़ी चाची

 

बूढ़ी चाची,
सुबह से चुप,
कहानी कहती,
अँधियारा गुप !

 

अस्सी साल,
फिर भी कमाल,
दन दन चलती,
घोड़े की चाल !

 

बाल हैं भूरे,
पूरे के पूरे,
बूढ़ी परी,
आये अंजोरे !

 

हरेक बात,
लाख टके की,
मोटी रोटी,
खाये मक्के की !

 

सारे गाँव पर,
उसकी छाँव,
आया छत पर,
कौआ काँव !

 

घूँघट आज,
उसकी लाज,
गलती मेरी,
गिरी है गाज !

 

मुँह अंधियारे,
रोज सकारे,
बच्चों सारे,
उठो दुलारे !

 

पंछी सारे,
करे हैं काम,
त्यागो आलस,
और आराम !

 

कभी न भूलो,
अपना कर्तव्य,
हिसाब रखना,
आय और व्यय !

 

बोलो सारे,
राम-सीता,
आज का पाठ,
रामायण गीता !

 

आज सुबह,
क्यूँ खास नही,
आँख खुली,
पर साँस नही !

 

रात तारा टूटा,
दिल को कूटा,
"साँझ" सपना,
सच्चा या झूठा !

 

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

 

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