Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दिल मे मुझे बिठाती है माँ

 

दिल मे मुझे बिठाती है माँ।
आँचल तले सुलाती है माँ।

 

काजल, टीका, क्रीम लगा कर।
अफसर मुझे बनाती है माँ।

 

देकर मुझे दुआ का बोसा।
तडके सुबह जगाती है माँ।

 

अपनी नीँद गँवा कर अक्सर।
लोरी मुझे सुनाती है माँ।

 

सीलकर सबके कपडे वपडे।
मेरे लिये कमाती है माँ।

 

आँख से ओझल हो जाने पर।
रो रो मुझे बुलाती है माँ।

 

दुनियाँ की हर चीज से ज्यादा।
दिल को मेरे सुहाती है माँ।

 

पड जाती है दिल को ठण्डक।
जब भी गले लगाती है माँ।

 

पडता हुँ बीमार अगर मै।
आँसु बहुत बहाती है माँ।

 

भुखी रहकर के खुद मुझको।
पुरी खीर खिलाती है माँ।

 

देकर अपनी खुशियाँ सारी।
दुख से मुझे बचाती है माँ।

 

 



'शिव'

 

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