Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दिल तुम्हे दे के भी आराम नही है मुझको

 

 

दिल तुम्हे दे के भी आराम नही है मुझको।
प्यार करने के सिवा काम नही है मुझको।

 



कहाँ आराम करुँ और कहाँ शुकुँ पाऊँ।
अब तो मिलती भी कोई शाम नही है मुझको।

 


अपने जज्बात से मैने बचा लिया खुद को।
अब कोई कहता भी गुलाम नही है मुझको।


 

 

किस तरह प्यार की बदनामीयाँ सहुँ तू बता।
मेरी इज्जत का मिला दाम नही है मुझको।


 

 

तुम मेरे हो मुझे यकीन भी होगा कैसे।
मिला अभी तलक पयाम नही है मुझको।


 

 

प्यार करते ही मेरी शान खो गई देखो।
कोई करता भी अब सलाम नही है मुझको।

 

 

'शिव'

 

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