Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दिलरुबा को जब भी देखा रुत सुहानी हो गई

 

दिलरुबा को जब भी देखा रुत सुहानी हो गई।

पतझडोँ पर मौसमोँ की मेहरबानी हो गई।

 

 

प्यार से उस मेहरबाँ ने होँठ क्या चुमेँ मेरे।

धडकनोँ की चाल जैसे राजधानी हो गई।

 

 

फुल सा मासुम चेहरा जान का दुश्मन बना।

सोलह सावन कत्ल कर क़ातिल जवानी हो गई।

 

 

दाल घर का छोडकर जब मुर्गी पर डाली नजर।

गाल पे थप्पड जडा थप्पड निशानी हो गई।

 

 

भुखी प्यासी मीडिया पर जब से रामु छा गया।

बुढे आशाराम की महफिल पुरानी हो गई।

 

 

अपने 'शिव' की बेवफाई ने तो दिल तोडा ही था।

अब तो उसके ख्वाब की भी आनाकानी हो गई।

 

 

 

 

'शिव'

 

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