Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दुर हो जा तु भले मै दुर होने से रहा।

 

दुर हो जा तु भले मै दुर होने से रहा।
बेवफा होना तो क्या मजबुर होने से रहा।

 


प्यार मे करके जफा तुमने कमा ली शोहरतेँ।
मै वफा करके भी क्युँ मशहुर होने से रहा।


 

 

मुझको अपनी क़ाफिरी पर रब से ज्यादा फक्र है।
पा भी जाऊँ गर खुदा मग़रुर होने से रहा।



 

 

मेरे दिल के अर्श पर हर दिन अमावस रात है।
दिल के अँधेरे मे अब तो नुर होने से रहा।


 

 

ऐ मेरे प्यारे हबीब तु ही कर ले कोशिशेँ।
मेरा सच्चा प्यार तो मंजुर होने से रहा।

 


इस जँमीँ के चाँद ये कितने भी सज धजकर रहेँ।
आसमाँ का चाँद तो बे्‌नुर होने से रहा।

 


प्यार मे थक हारकर बैठा है दिल खामोश सा।
अब किसी के प्यार मे दिल चुर होने से रहा।

 

 

 

'शिव'

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