Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एक पल को भी नही आराम है

 

एक पल को भी नही आराम है।
ग़ुरबतोँ मे पलती सुबहो शाम है।

 

 

मौत के प्याले की दिल मे आस रख।
जिन्दगी तो एक कडवा जाम है।

 

 

सबको अपने आप से मतलब है बस।
अब कहाँ किसको किसी से काम है।

 

 

पुँछते हैँ मुझसे कुछ युँ बेज़मीर।
आपकी इज्ज़त का कितना दाम है।

 

 

राम आशाराम अब बनने लगेँ।
ना ही वो सीता और ना वो राम है।

 

 

छोडकर तुझको नही जाऊँगा मै।
माँ तेरे कदमोँ मे चारोँ धाम है।

 

 

आइये वरना ज़हर पी जायेगेँ।
उनका ये 'शिव' के लिए पैगाम है।

 

 

 

'शिव'

 

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