गर दिल मे है गहराई समन्दर से क्या डरना।
लब पर जो है सच्चाई तो पत्थर से क्या डरना।
लेकर दुआ माँ-बाप की जब चल पडे हो तुम।
तब शायरी के फन के सिकन्दर से क्या डरना।
तेरे साँसो की गरमी से पिघलती है कयामत।
फिर तुमको आसमाँ के बवंडर से क्या डरना।
तुम पर करेगा जुल्म तो रो देगा खुद-ब-खुद।
तुम्हे अपनी जानेजानाँ सितमगर से क्या डरना।
दिल मे वतनपरस्ती का रखते हो गर जुनुँ।
तब चीन पाक जैसे छुछन्दर से क्या डरना।
बरसात हो बिजली गिरे या आये कयामत।
अब अपनी ही जमीन और अम्बर से क्या डरना।
हम दिल दुखाके करते हैँ अरमाँ का सबके खुँ्न।
फिर खुन से सने किसी खंजर से क्या डरना।
गर मौत आ गयी है तो सो जा आराम से।
अब तुझको किसी काँटे के बिस्तर से क्या डरना।
।शिव।
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