Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हास्यगीत

 

इस तरहाँ से घुर रही
हैँ जैसे काट के खा लेँगी।
हमको सेन्टरफ्रुट समझकर च्वीँन्गम बना चबा लेँगी।

 

 

हम हैँ मिस्टर बुलेटप्रुफ
पर ये न्युक्लियर मिसाइल
हैँ।
हम तो ठहरे कुश्ती वाले
पर ये फ्रीइस्टाइल है।
ये अपनी कमसीन कमर मे मेरा गला दबा लेँगी।

 

 

 

कभी कभी गुस्से मे
आकर मुझको आँख
दिखाती हैँ।
हुकुम चलाती हैँ ये ऐसे
जैसे मुझे खिलाती हैं।
ऐसा लगता है दुनियाँ से
अब ये मुझे निकालेँगी।

 

 

खुद को स्मार्ट समझती
हैँ पर अकल शकल मे थोडी
है।
ये कोई मृग मोर नही हैँ
बिना पुँछ की घोडी हैँ।
जब चाहेँगी दौड लगाना
जीँस मे टाँग घुसा लेँगी।

 

 

मुझको सडे हुए आलु का
सुखा पापड कहती हैँ।
जो भी दिल मे आता है वो मुझको बकती रहती हैँ।
जब हम कुछ बोलेगेँ तब
ये अपना मुँह फुला लेँगी।

 

 

 

'शिव'

 

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