हम अपनी दास्तान-ए-गम यहाँ सुनाएँ किसे ।
नीँद मे सोया है इन्साँ यहाँ जगाएँ किसे ।
गम ही तो यार है मेरा भरे जमाने मे ।
हम तो हो जायेगेँ तनहाँ यहाँ भगाएँ किसे ।
अपनी नियत से वो गिरने को खडा रहता है ।
यहाँ हर शख्स गिरा है यहाँ उठाएँ किसे ।
पेट मे पलती हुयी बेटी मारते हैँ सब ।
यहाँ हर शख्स है मुजरिम यहाँ बचाएँ किसे ।
प्यार पायेगा यहाँ दिल बेदाग हो जिसका ।
जख्म से छलनी हुआ दिल यहाँ दिखाएँ किसे ।
। शिव ।
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY